Lekhika Ranchi

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राष्ट्र कवियत्री ःसुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएँ ःबिखरे मोती



कदम्ब के फूल सुभद्रा कुमारी चौहान

(१)
“भौजी ! लो मैं लाया ।”
“सच ले आए ! कहाँ मिले ?” ।
“अरे ! बड़ी मुश्किल से ला पाया, भौजी !”
“तो मजदूरी ले लेना ।”
“क्या दोगी ?”
“तुम जो माँगो।”
“पर मेरी मांगी हुई चीज़ मुझे दे भी सकोगी ?”
“क्यों न दे सकूँगी ? तुम मेरी वस्तु मेरे लिए ला सकते हो तो क्या मैं तुम्हारी इच्छित वस्तु तुम्हें नहीं दे सकती?"
“नहीं भौजी न दे सकोगी; फिर क्यों नाहक कहती हो?"

"अब तुम्हीं न लेना चाहो तो बात दूसरी है; पर मैंने तो कह दिया कि तुम जो माँगोगे मैं वही दूंगी ।”

"अच्छा अभी जाने दो, समय आने पर माँग लूंगा” कहते हुए मोहन ने अपने घर की राह ली । दूर से आती हुई भामा की सास ने मोहन को कुछ दोने में लिए हुए घर के भीतर जाते हुए देखा था। किन्तु वह ज्यों ही नज़दीक पहुँची मोहन दूसरे रास्ते से अपने घर की तरफ़ जा चुका था। वे मोहन से कुछ पूछ न सकीं पर उन्होंने यह अपनी आँखों से देखा था कि मोहन कुछ दोने में लाया है; किन्तु क्या लाया है यह न जान सकीं ।

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